अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा
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अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा
अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा
अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा। Rajput Soorme
अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा।
अकाली फूला सिंह एक महान राजपूत योद्धा थे । जिनकी बहादुरी पर हमेशा नाज़ रहेगा । सिक्ख मिसल शहीदां के जत्थेदार थे, जो मुख्य रूप से श्री अमृतसर साहिब से गतिविधयां चलाती थी। अकाली फूला सिंह जी अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार भी थे। महाराजा रणजीत सिंह ने भी अकाली जी के नेतृत्व और बहादुरी का लोहा माना। जब अकाली जी ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दरबार साहिब अमृतसर के लिए प्रसादि और लंगर की आपूर्ति के लिए हर रोज़ लाहौर से आनेवाली रसद की गाड़ी बंद कर दी। कई लोगों का मानना है कि जत्थेदार अकाली फूला सिंह का जन्म मानसा के पास जिला संगरूर के एक गाँव में हुआ था जो गलत है। एक ऐतिहासिक खोज से पता चलता है कि 1962 ईस्वी से पहले उस गांव में अकाली जी का कोई नाम चिन्ह नहीं था और न ही हमें कोई ऐतिहासिक स्रोत मिलते हैं। खोज करने से पता चलता है कि 1962 में, संत गुरबचन सिंह (काली कंबली वाले ) ने पहली बार अकाली फूला सिंह की याद में एक स्मारक बनवाया था। जब कि होशिारपुर में अकाली जी का पुश्तैनी गांव अजनोहा है और उनकी याद में एक बहुत पुराना गुरुद्वारा भी है।
इतिहासकार वासदेव सिंह परिहार की खोज से पता चलता है कि जत्थेदार अकाली फूला सिंह का जन्म 14 जनवरी 1761 को जिला होशियारपुर की तहसील गढ़शंकर के गांव अजनोहा में एक परमार राजपूत परिवार में हुआ था। इन के पूर्वज राजस्थान व् मध्प्रदेस से आए थे। अब कई लोग गुस्से में होंगे कि अकाली जी का गोत्र क्यों लिखा है? यहाँ यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि जब भी कोई गैर-राजपूत इतिहासकार इतिहास लिखता है, तो जब उसे किसी राजपूत योद्धा का नाम लिखना पड़ता है, तो वह अपनी कलम खींच लेता है क्योंकि वह राजपूतों को कोई श्रेय नहीं देना चाहता। उनके पिता का नाम सरदार ईशर सिंह परमार और माता का नाम बीबी हर कौर था। सरदार ईशर सिंह जो कि मिस्ल शहीदां के योद्धा भी थे। Carmichael Smith द्वारा लिखी किताब History Of Reigning Family of Lahore के अनुसार, अकाली के पिता मिसल के योद्धा होने के साथ-साथ अकाल बुंगा अमृतसर के एक सेवादार भी थे। परिवार का निवास भी अमृतसर में था। जब 5 फरवरी 1762 (वड्डा घल्लूघारा) को अहमद शाह दुर्रानी (अब्दाली) ने हमला किया तो सरदार ईशर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। अपने घावों को सहन न करते हुए भगवान के चरणों में जा विराजे।
माता हर कौर जी की अवस्था बहुत परेशानी वाली थी। अकाली जी के छोटे भाई संत सिंह जी जी का भी जन्म हो गया। दोनों बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मां पर आ गई। जब अकाली जी 14 साल के हुए, तो एक दिन छत से उतरते समय माता जी का पैर सीढ़ियों से फिसल गया और उन्हें गंभीर चोटें आईं। माता जी ने अपने न बचने की उम्मीद रखते हुए अमृतसर साहिब से, संत नारायण सिंह जी जो आनंदपुर साहिब में थे जो उनके पति ईशर सिंह के बहुत नज़दीकी थे और अपने ससुराल अजनोहा में संदेशे भेजे। संत जी भी आए और ससुराल से भी लोग आए। माता जी ने दोनों पुत्रों का हाथ संत नारायण सिंह जी को सौंप दिया और कहा कि आप इन दो बच्चों को अच्छी शिक्षा देना । माता जी की मृत्यु हो गयी । अपनी माँ के दाह संस्कार के बाद, उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और बाबा नारायण सिंह से अमृत प्राप्त करने के बाद मिस्ल शहीदां में प्रवेश किया, उन्होंने एक साधारण जीवन जीना शुरू कर दिया। उन्होंने आनंदपुर साहिब में धर्म के लिए कई लड़ाईयां लड़ीं। उनकी बहादुरी और बुद्धिमानता के कारण, पूरे जत्थे में उनका सम्मान बहुत बढ़ गया। जब बाबा नारायण सिंह का निधन हुआ, तो अकाली फूला सिंह जी को जत्थे का जत्थेदार नियुक्त किया गया। फिर वह खुद अमृतसर साहिब के गुरद्वारों की देखभाल के लिए अमृतसर आ गए। उन्होंने बुर्ज अकाली में निवास लिया। जब महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर की भंगी मिस्ल पर हमला किआ तो अकाली फूला सिंह ने दोनों को खून खराबा करने से रोका। रंजीत सिंह की ताकत ज्यादा होने से अमृतसर को उसे सौंप दिआ और भंगी सरदारों को जागीर दे दी। इसके साथ ही अमृतसर पर महाराजा रणजीत सिंह ने कब्जा हो गया । महाराजा ने दरबार साहिब की परिकर्मा के लिए बहुत धन दान किआ। अकाली फूला सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ीं। कसूर की लड़ाई के दौरान, अकाली फूला सिंह ने अपनी बहादुरी का जोश दिखाया। जब उनके दल ने कसूर की घेराबंदी की, तो कुतुबुद्दीन बहुत बड़े और मजबूत किले में बैठा था। अकाली फूला सिंह ने तोपें चलाईं और गोले बरसाए। कुतुबुद्दीन ने भी बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने कई दिनों तक लड़ाई जारी रखी। अंत में अकाली जी ने रात को किले की दीवारों के नीचे बारूद भर दिया, और सुबह होने से पहले किले की दीवारों को उड़ा दिया। जब किले की दीवारें ढह गईं, तो उसने तुरंत हमला किया और किले पर कब्जा कर लिया। कुतुबुद्दीन को पकड़ लिया गया और महाराजा के सामने लाया गया। कुतुबुद्दीन की बिनती पर महाराजा ने उसे माफ कर दिया।
अकाली फूला सिंह बहुत बहादुर जत्थेदार थे। अकाल तख्त के जत्थेदार रहते समय, उन्हें खबर मिली कि महाराजा एक मोरां नाम की तवायफ की हवेली पर जाने लगे। खबर सुनकर अकाली को बहुत बेचैनी हुई।
उन्होंने सब से पहले लाहौर दरबार से रोजाना श्री अमृतसर के लिए आने वाला प्रसाद तथा लंगर की रसद का गड्डा स्वीकार करना बंद कर दीआ और उन्होंने महाराजा को अकाल तख्त के सामने पेश होने का आदेश दिया। महाराजा रणजीत सिंह अकाल तख़्त का हुक्म मानते हुए निर्धारित समय पर अकाल तख़्त पहुंचे। अकाली जी ने उसे 21 चाबुक की सज़ा सुनाई। महाराजा रणजीत सिंह भी केवल अकाली फूला सिंह से डरता था। महाराजा रणजीत सिंह ने सजा को स्वीकार कर लिया। अकाली जी ने महाराजा रणजीत सिंह को अकाल तख्त के बाहर एक इमली के पेड़ से बांध दिया। लेकिन यह सब देखकर, संगत ने महाराजा की सादगी, सिख धर्म के प्रति विनम्रता और समर्पण को देखते हुए क्षमा करने को कहा। अकाली जी ने चाबुक तो माफ कर दिए लेकिन रसद की गाड़ी दोवारा स्वीकार करने से मना कर दिआ । महाराजा ने माफी मांगी और बाद में मोरां से शादी कर ली।
जब 1809 में Metcafe अमृतसर आया, तो अकाली ने अपने साथियों के साथ उसकी टुकड़ी पर हमला कर दिया। मेटकाफ मुश्किल से बच गया और उसने कहा कि सिख समुदाय को नुकसान पहुंचाने वाले लोग अमृतसर में प्रवेश न करें।
1813 में, जब जींद राज्य के कुंवर प्रताप सिंह ब्रिटिश सरकार के साथ विवाद के कारण जींद से भाग गए, तो उन्होंने अकाली साहब की शरण ली। अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह पर अकाली फूला सिंह और कुंवर प्रताप सिंह को अंग्रेजों को सौंपने का दबाव डाला। अकाली फूला सिंह ने जवाब दिया कि खालसा की शरण में आए लोगों को वापस नहीं किया जाता।
महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर को खालसा राज्य के रूप में देखने की लालसा रखते थे। जब पंडित बीरबल 1819 में कश्मीर से लाहौर पहुंचे और कश्मीर के लोगों पर हो रहे अत्याचारों का वर्णन किया, तो महाराजा ने अपनी देखरेख में खालसा दल को इकट्ठा किया और कश्मीर पर चढ़ाई की। वज़ीराबाद में पहुँचकर, खालसा सेना को तीन डिवीजनों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया। एक भाग का नेतृत्व सरदार शाम सिंह अटारी और दीवान चंद ने किया था और दूसरा अकाली फूला सिंह और राजकुमार खड़क सिंह ने किया था। आपात स्थिति से निपटने के लिए एक तीसरी टुकड़ी को महाराजा ने अपने साथ रखा ताकि जब भी और जहां भी जरूरत हो मदद उपलब्ध कराई जा सके। खालसा फौज को देखकर राजौरी के शासक अजीज खान रातो रात भाग गआ और उनका बेटा रहीमुल्लाह खान खालसा सेना में शामिल हो गया। वह पहाड़ियों के माध्यम से सिख सेना का मार्गदर्शन करने में सहायक हुआ। बदले में, महाराजा ने रहीमुल्लाह खान को अपने पिता के स्थान पर राजौरी का शासक नियुक्त किया। पुंछ के किले में, जबर्दस्त खान (Jabbar Khan) अपनी सेना के साथ खालसा बलों का सामना करने के लिए तैयार बैठा था। अकाली फूला सिंह की फ़ौज ने किले पर हमला किया और एक छोटी लड़ाई के बाद सभी मोर्चों को दुश्मन से मुक्त कर दिया। किले का एक ओर भाग उड़ गया था। जबर्दस्त खान पूरी तरह से घिरा हुआ था, खूब किरपाने चलीं । मुसलमानों के लिए क़यामत का दिन आ गया था। अंत में जबर्दस्त खान आत्मसमपर्ण कर दिआ।
जबर्दस्त खान को हराकर, खालसा दल आगे बड़ा। शेर गढ़ी किले सहित कई अन्य चौकियों पर कब्जा करने के बाद खालसा फौज ने कश्मीर पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया। 1819 bमें खालसा दल धूम धाम से श्रीनगर में दाखिल हो गया। कश्मीर विजय के बाद महाराजा श्री अमृतसर साहिब पहुंचे और शुक्राने की अरदास करवाई । तीन दिनों तक पूरे शहर में दीपक जलाए गए। इस समय, महाराजा साहिब अकाली फूला सिंह की बहादुरी और राष्ट्रीय उत्साह से इतने मोहित थे कि उन्होंने हमेशा के लिए लाहौर में रहने पर जोर दिया। लेकिन अकाली, जो हमेशा स्वतंत्र रहना चाहते थे और हमेशा गुरु के शहर में रहना पसंद करते थे, ने प्यार से महाराजा साहब से कहा, "हम हर समय आपके साथ हैं, जब आप आवाज देंगे तब हम मौजूद रहेंगे, लेकिन श्री अमृतसर से बाहर रहना हमें पसंद नहीं है।
अकाली जी की अंतिम लड़ाई 1923 में पेशावर की थी। सिखों और अफगानों के बीच शैदू लड़ाई के रूप में भी जानी जाती है। अकाली फूला सिंह के साथ 800 घुड़सवार और 700 पैदल निहंग खालसा के सैनिक थे। पेशावर पर आक्रमण करने से पहले, खालसा सेना मैदान में जीत के लिए अकाल पुरख से प्रार्थना की और भगवान से आक्रमण करने की अनुमति मांगी। जैसे ही प्रार्थना समाप्त हुई, महाराजा रणजीत सिंह को जनरल वेंतूरा (खालसा सेना के इटालियन जनरल) से संदेश मिला कि तोपों और अन्य गोला-बारूद को लाने में उन्हें कुछ समय लग रहा है, इसलिए सिख तोपखाने आने तक हमले को रोक दें। महाराजा रणजीत सिंह ने सैनिकों को प्रतीक्षा करने का आदेश दिया। लेकिन अकाली फूला सिंह ने महाराजा के आदेश को मानने से इनकार कर दिया। अकाली फूला सिंह ने कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में, जिन्होंने आज रात हमले के गुरुमते के साथ अरदास की है, उन्हें किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं लिया जा सकता। अकाली फूला सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह से कहा कि आप अपनी सेना के बारे में फैसला कर सकते हैं जैसा आप को अच्छा लगता है, लेकिन निहंग सिंह सेना युद्ध के मैदान में जा रही है और किसी भी परिस्थिति में मैदान को जीते बिना वापस नहीं आएगी।
अकाली फूला सिंह के नेतृत्व में, 1500 निहंग सिंह ने नौशेहरा के क्षेत्र में 30,000 पठानों पर हमला किया, बोले सो निहाल सति श्री अकाल ने नारे लगाते आगे बढ़ते रहे। गाज़ियों ने गोलियों की बरसात क्र दी । उनके पास 40 तोपें भी थीं। गोला-बारूद और पहाड़ी की चढ़ाई के कारण, निहंग अपने घोड़े छोड़ कर पैदल आगे बढ़ने लगे। अकाली जी हाथी पर सवार थे। महावत को 2 गोलियां लगीं। वह गंभीर रूप से घायल हो गया। महाराजा रंजीत सिंह युद्ध के मैदान में निहंगों को लड़ते देख रहा था और था कि इतनी कम संख्या से बहुत नुकसान होगा।
आखिरकार, युद्ध के मैदान में गोलीआं लगने के बाद 62 वर्षीय राजपूत जनरल शहीद हो गए।आज भी अकालीजी की याद में उनके दाह संस्कार के स्थान पर एक यादगार बनी है। यह काबुल नदी के तट पर Pir Sabaq (Pir Sabak) गाँव में नौशहरा जिले और खैबरपख्तूनख्वा राज्य में स्थित है।यह लाहौर से 466 किमी दूर स्थित है। उनके स्मारक पर भी उनके गांव का नाम अजनोहा लिखा है।
References
Ankheela Jarnail Akali Phoola Singh Bhasha Vibhag Punjab
Rajput jo Sikh Bne Vasdev Singh Parhar
History Of Reigning Family of Lahore Carmichael Smith