भाई बज्जर सिंह राठौर
THIS SITE IS MADE FOR RAJPUTS' HISTORY
भाई बज्जर सिंह राठौर
भाई बज्जर सिंह राठौर
रणबांके राठौर / उडाने राठौर
भाई बज्जर सिंह राठौर
यह पंजाब के राठौरों के बारे में है। राठौड़ पंजाब में कैसे आए? यह राजवंश मारवाड़ (राजस्थान) का मूल निवासी था। राजस्थान, जिसे भारत की स्वतंत्रता से पहले "राजपुताना" कहा जाता था।
1583 में, मारवाड़ के राव ऊदा राठौर अपने 500 साथियों के साथ पंजाब आए और गुरु हरगोबिंद जी की शरण ली। गुरु हरगोबिंद जी के कारण ग्वालियर के किले से रिहा किए गए 52 राजाओं में राव ऊदा राठौर भी थे। पंजाब में पहुँचकर, वह रोहिला गाँव में बस गए, जहाँ गुरु हरगोबिंद ने अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी। राव शिगारा जी राठौर और राव जैता जी राठौर ने गुरु हरगोबिंद को शस्त्रों की शिक्षा दी थी।
भाई बज्जर सिंह राठौर वंशावली।
राव ऊदा जी राठौड़ के पुत्र, राव माँडन जी थे।
राव माँडन जी के पुत्र थे, राव सुखराज जी।
राव सुखराज जी के पुत्र, राव राम सिंह जी थे।
राव राम सिंह जी के पुत्र, सरदार राव बज्जर सिंह राठौर थे।
सरदार राव बजर सिंह राठौर का एक बेटा वीर सिंह राठौर और एक बेटी बीबी भिक्खां थी, बीबी भिक्खां शादी आलम सिंह चौहान (जिसे आलम सिंह नचना के नाम से भी जाना जाता है) से हुई थी। आलम सिंह को नचना इस लिए कहा जाता था क्योंकि वह गतका खेलता था तो ऐसे लगता था जैसे कि कोई नृत्य कर रहा हो और दुश्मन को खत्म कर देता था। यह आलम सिंह चौहान (नचना) था, जिसने गुरु गोविंद सिंह के छोटे बेटों को हथियार और युद्ध की कला सिखाई।
सरदार बज्जर सिंह राठौर ने छोटी उम्र से ही गुरू गोबिंद सी जी घुड़सवारी और हथियार चलाना सिखाए। भाई बज्जर सिंह राठौर, जिन्हें उस्ताद बज्जर सिंह राठौर के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के जिला वजीराबाद के गांव सोढरा में भाई राम सिंह के घर हुआ था। उनके पड़दादा भाई माँडन जी राठौर गुरु हरगोविंद जी के अनुयाई और सेनापति भी थे। गुरु जी ने 27 सितंबर 1621 को रोहिले में अत्याचार के खिलाफ पहिली लड़ाई लड़ी थी, जिसे अब हरगोबिंदपुर कहा जाता है। लड़ाई में, भाई माँडन जी राठौर ने बहुत साहस दिखाया।
सरदार बज्जर सिंह राठौर के दादा भाई राव सुखराज राठौर भी गुरु हरगोबिंद की सेना में एक मुख्य योद्धा और सेनापति थे। वह 16 दिसंबर 1634 को मालवा में महिराज की लड़ाई में शहीद हो गए थे। इस लड़ाई में, भाई राव सुखराज राठौर ने मुगल सेना के जनरल इब्राहिम खान और कई अन्य मुगलों को मार दिया था।
भाई बजर सिंह राठौर के तीन अन्य भाई थे, जो छोटे थे। भाई अजीत सिंह, भाई नेता सिंह और भाई उदय सिंह। तीनों ने अपना जीवन अत्याचार से लड़ते हुए बिताया। भाई अजीत सिंह और भाई नेता सिंह, जो 14 अक्टूबर 1700 को निर्मोहगढ़ की लड़ाई में शहीद हुए थे। सबसे छोटे भाई उदय सिंह थे, जो 24 जून 1734 को भाई मनी सिंह के साथ लाहौर में शहीद हुए थे। राजपूत रक्त होने के नाते, भाई बजर सिंह राठौर के पास अपने पूर्वजों, वीरता, गर्व, निडरता, साहस और दृढ़ संकल्प के गुण थे। भाई बज्जर सिंह राठौर की घुड़सवारी , तीरंदाजी, भाला फेंक और अन्य सैन्य कर्तव्य बेजोड़ थे। उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबज़ादों और कई अन्य लोगों को हथियार चलाना सिखाया। भाई मनी सिंह के परिवार से भी उनका गहरा संबंध था। उनकी दादी बीबी मलूकी जी जो शहीद भाई मणि सिंह जी की बुआ थीं। बीबी मलूकी भाई बल्लू राय पवार की बेटी थी जो 5 अप्रैल 1634 को अमृतसर की लड़ाई में शहीद हो गए थे। भाई बज्जर सिंह राठौड़ की बेटी बीबी भिक्खां थी । बीबी भिक्खां जो गुरु गोबिंद सिंह जी के बहादुर योद्धा भाई आलम सिंह चौहान (आलम सिंह नचना के नाम से जाने जाते थे) की पत्नी थीं। बीबी भिक्खां ने शस्त्र विद्या अपने पिता जी से ली थी। बीबी भिक्खां सरसा नदी के किनारे मुगल फौज के साथ युद्ध में शहीद हुई । चमकौर साहिब की लड़ाई में भाई वीर सिंह और उनके दो बेटे भाई मोहर सिंह और भाई अमोलक सिंह शहीद हुए।
1708 में बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ महाराष्ट्र से पंजाब आये। बंदा सिंह बहादुर जो आप भी एक राजपूत थे। सब सिखों को इकठ्ठा कीआ। 1710 में चप्पर चिड़ी की जंग में सरदार बज्जर सिंह राठौर ने बृद्ध होते हुए भी युद्ध में भाग लिआ और शहीदी प्राप्त की।
References
Sri Gur Parkash Suraj Granth by Bhai Santokh Singh
Tawarikh Guru Khalaa by Giani Gian Singh
Mahima Prakash by Sarup Das Bhalla
Harbans Singh, Guru Gobind Singh. Chandigarh, 1966
Kuir Singh, Gurbilas Patshahi 10
Writer and Researcher